हमारा भारत गांवों में बसता है और गांव में रहने वाले छोटे किसानों का जीवोपार्जन का साधन खेती-किसानी है जिसमें किसानों की व्यस्तता केवल 4 से 5 माहकी ही होती है और वह भी पूर्णतःप्रकृतिपर आधारित होती है।ऐसे में जितनी आयकिसान की होती है उतने में अपने पूरे परिवार का भरण - पोषणवह नहीं कर पाता पीढ़ी दर पीढ़ी किसानों की भूमियाँ भी कम होती जा रहीं हैं आजकल के अधिकतर किसानों के पास बमुश्किल १-२ एकड़ भूमि होती है। अब ऐसे में उस किसान के ३-४ बच्चे इतनी सी भूमि पर कैसे काम करें। ऐसे में पैसों और काम की आवश्यकता के चलते ये युवा शहरों की ओर पलायन करते हैं। ऐसे ही एक युवा, सचिन पहले जामनगर, गुजरात में एक सिमेंट की फ़ैक्टरी में काम करते थे। जैसे ही उनके कुछ मित्रों से उन्हें पता चला की हथकरघा के माध्यम से वे अपने गाँव में ही जामनगर के समान राशि अर्जित कर सकते हैं उन्होंने निर्णय ले लिए और वापस चले आए अपने गाँव बिलगुंआ और निकट स्थित कुंडलपुर में हथकरघा प्रशिक्षण केंद्र पर काम करने लगा। ऐसे लगभग ५०० युवाओं को रोज़गार श्रमदान के माध्यम से मिल रहा है। पलायन को रोकने से इन युवाओं को बदतर (झुग्गी-झोंपड़ी में रहना, अधिक समय काम करना, जैसा-तैसा भोजन करना आदि) जीवन जीने से बचाया जा रहा है और इन्हें इनके ही गाँव में अपने माता-पिता के पास रुकने का मौक़ा मिल रहा है। श्रमदान ऐसे किसानपरिवारोंकोअतिरिक्तआयकासाधनकेरूपमें विकल्पप्रदानकरताहै।हथकरघासेशुद्धसात्विकएवंअहिंसकवस्त्रोंकाउत्पादनकर अपना रोज़गार करें।
- श्रमदान समूह