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हमारी कलाएँ

सदियों से भारतीय अर्थव्यवस्था इस देश के छोटे छोटे ग्रामीण इलाक़ों पर केंद्रित रही है। यहाँ की कला, भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। किंतु औद्योगिक क्रांति एवं अर्थव्यवस्था के वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप हस्तशिल्प का पतन होता चला गया। भारतीय कलाकारों की संख्या दिन पे दिन कम होती जा रही है और इन कलाकारों की आगामी पीढ़ी भी उनके इस कार्य को करने में रुचि नहीं रखती। ऐसी परिस्थिति जैन संत आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज की प्रेरणा से श्रमदान, भारतीय कलाओं का संरक्षण करने में लग गया है। हमें विश्वास है की गुरुजी के कहे अनुसार गाँवों में इन कलाओं के विकास से भारत समृद्ध होगा।

श्रमदान के प्रशिक्षण केंद्रों पर हाथ से कताई, बुनाई, रंगाई, कढ़ाई आदि की विभिन्न विधाओं का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। आइए इन कलाओं को जानें -

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कुण्डलपुरी साड़ी

कुण्डलपुरी साड़ी मतलब भारतीय हथकरघा शिल्प का एक अनूठा उदाहरण जिसकी जन्मस्थली भारत के हृदय स्थल मध्यप्रदेश में स्थित कुण्डलपुर नामक तीर्थ क्षेत्र है।

कुण्डलपुरी साड़ियों की दुर्लभ विशेषताओं में से एक है - सर्वप्रिय लोक-कथाओं और किंवदंतियों की जीवंत छायांकन का होना, जिसे दर्शक बड़े बाबा के भव्य जिनबिंब की स्थापना की आश्चर्यजनक कहानी के रूप में देखते हैं जैसे कि औरंगजेब द्वारा बड़े बाबा की दिव्य मूर्ति को नुकसान पहुँचाने का असफल प्रयास और उनका पलायन तथा बुंदेलखंड के सम्राट छत्रसाल द्वारा बड़े बाबा के मंदिर के जीर्णोद्धार के वायदे की महती कहानी और हारे हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने की पुण्य कहानी।

ये ऐतिहासिक कहानियाँ हमारे दिलों को खुशी और आश्चर्यकारी एहसास से भर देती हैं। साड़ी की बूटियों की डिज़ाइन की प्रेरणास्वरूप कंगन, कर्णिका, चक्र मणिमाल, मुकुट आदि चिन्ह ६वीं शताब्दी में निर्मित बड़े बाबा की प्राचीन वेदी में चिन्हित हैं।

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कताई

खादी के धागे की कताई खादी उत्पाद बनाने का प्रारंभिक चरण है। धागा बनाने के लिए इस प्रक्रिया में सूती रेशों की लड़ी को आपस में लपेटा जाता है। रेशों को कताई फ्रेम के छल्लों पर रखा जाता है और बेलनों के कई समूहों द्वारा निकाला जाता है, जो क्रमिक रूप में उच्चतर रफ़्तार से घूम रहे होते हैं। धागे को बेलनों द्वारा घुमाया जाता है और वांछित बॉबिनों पर भर दिया जाता है। यह खादी के धागे की कताई का अंतिम चरण है जिसमे धागे को खीचने, लपेटने और घुमाने की सारी प्रक्रिया एक ही प्रचालन में पूरी हो जाती है। फिर धागे से भरी बॉबिनों को छल्ले के फ्रेमों से हटा दिया जाता है और ब्लीचिंग, बुनाई आदि के प्रसंस्करण के लिए उपयोग किया जाता है।

खादी के कपड़े किसी भी मौसम में पहने जा सकते हैं। यह सर्दियों में गर्म और गर्मियों में ठंडा होता है। यह कपड़ा शरीर के अनुकूल होता है जो अन्य सिंथेटिक कपड़ों के विपरीत किसी भी तरह की एलर्जी या जलन को नहीं होने देता। खादी बनाना पर्यावरण के अनुकूल है, जैसे कि यह किसी भी विद्युत इकाई और निर्माण प्रक्रिया पर निर्भर नहीं रहता और इसीलिए इसमें कम कार्बन होता है।

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ज़रदोज़ी

ज़रदोज़ी किसी कपड़े पर भारी और विस्तृत धातु की कढ़ाई करने की बेहतरीन तकनीकों में से एक है जो अक्सर शाही रूप देने के लिए उपयोग में लाई जाती है। इस कला में कपड़ों पर सुन्दर और जटिल डिज़ाइन बनाने के लिए धातु लेपित धागे का उपयोग किया जाता है। इसमें डिज़ाइनें अक्सर सोने, चांदी या तांबे की पतली लड़ियों का उपयोग करते हुए बनाई जाती हैं जिसमे मोती, मनके और बहुमूल्य रत्न भी जड़े जा सकते हैं।

इन विस्तृत डिज़ाइनों को बनाने के लिए कपड़े के पीछे धागे को उंगली से पकड़ कर रखा जाता है और ऊपर आरी, एक नुकीली नोक वाली सुई पकड़ के रखी जाती है। कारीगर लोग कपड़ों पर विस्तृत पैटर्न जड़ने के लिए चमकीले सिक्के, मनके, बहुमूल्य और अल्प मूल्यवान रत्न जैसी सामग्री का उपयोग करते हैं।

ज़रदोज़ी का उपयोग कपड़ों और घरेलू वस्त्रों सहित अनुप्रयोगों की एक विस्तृत श्रृंखला की सजावट के लिए किया जाता है। कढ़ाई की ये उत्कृष्ट शैली आज लोकप्रिय रूप से वैवाहिक समारोहों में उपयोग की जाती है। पहले कढ़ाई शुद्ध चाँदी के तारों और असली सोने की पत्तियों से की जाती थी। हालाँकि, आज कारीगर लोग सोने या चांदी की पॉलिश वाले तांबे के तार के संयोजन का उपयोग करते हैं।

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जकॉर्ड

जैकार्ड एक उपकरण है जो ऐसे करघे पर जमाया जाता है जिसमे बेल, बूटे और जाली जैसे पेचीदे पैटर्न वाली साड़ियों की बुनाई की प्रक्रिया होनी हो। करघे और जैकार्ड के परिणामिक समवेत को जैकार्ड करघा कहते है। सबसे पहले एक पैटर्न तैयार किया जाता है जिसे एक साथ एक सतत क्रम में जुड़ी छिद्रित कार्डों की एक श्रृंखला द्वारा नियंत्रित किया जाता है। डिज़ाइन की हर एक पंक्ति के अनुसार प्रत्येक कार्ड पर कई पंक्तियों में छेद किए जाएंगे। करघे पर ताने को तनाव के साथ ऊपर उठा के रखा जाएगा और बाने को कटले में रखा जाएगा। जैसे शटल आगे-पीछे चलेगी, ताने और बाने का धागा आपस में बुन जाएगा। नियोजित बुनाई तकनीक के आधार पर, जैकार्ड साड़ियों को उनके पीछे बचे हुए छोटे धागों को काटने की अंतिम प्रक्रिया से गुजरना होता है।

जैकार्ड करघे की साड़ी सजावटी सौन्दर्य से भरी और मुलायम बुनावट की होती है, चूंकि इस पर पैटर्न की कढ़ाई नहीं होती बल्कि सीधे साड़ी के साथ बुना हुआ होता है। साड़ी में जो डिज़ाइन बुनी गई है वह थोड़ा उठा हुआ सजावटी क्षेत्र बनाती है।

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डॉबी

डॉबी एक उपकरण है जो डिजाइनिंग क्षमता बढ़ाने के लिए करघे के ऊपर लगी होता है। यह छोटे ज्यामितीय डिजाइन पैटर्न को अतिरिक्त ताने के साथ कपड़े में ही बुनाए जाने के लिए होती है। यह जैकार्ड के सामान होती है, क्योंकि डिज़ाइनों को बनाने के लिए इसे करघे से जोड़ना पड़ता है। यह सादा बुनाई की तुलना में अधिक धीमी और समय लेने वाली होती है। इस उपकरण का प्राथमिक भाग लेटेस होता है। इसमें मुख्य रूप से एक घुमावदार रोलर, कुछ लीवर और लेटेस की एक श्रृंखला होती है। बुनाई करते समय, बुनकर दायां पैडल दबाता है जिसके परिणाम स्वरुप, घुमावदार रोलर खांचे में एक नई लेटेस लाते हुए एक बार बदल जाता है। शेड बनाने के लिए लीवर की लिफ्ट हारनेस से जुड़ी हुए ताने के धागों को उठा देती है। हर अलग डिज़ाइन के लिए अलग-अलग खुटी लगेंगी।

डॉबी करघे पर बनाई गई डिज़ाइन जैकार्ड पैटर्न की तुलना में बहुत कम जटिल होती है। साड़ी, धोती दुपट्टा और अन्य हलके वजन वाले उत्पादों की किनारी पर डिज़ाइन बुनने के लिए डॉबी उपयुक्त रहती है।

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बहु-पैडल बुनाई

कपड़ा बुनाई पैटर्न के कई प्रकार होते हैं। जिस प्रकार से ताने और बाने के धागे एक कपड़े की तरह बुन जाते हैं उस प्रकार को कपड़े की बुनाई कहते हैं। कपड़े की बुनियादी बुनाई में धागे (लम्बे वाले ताने और आड़े वाले बाने) सबसे सरल पैटर्न में एक दूसरे से समकोण पर आड़े-तिरछे जाते हैं। लेकिन दूसरों में, कलात्मक, सजावटी रूप से वे कई रोचक पैटर्न में बुने जाते हैं। बुनकर के पैरों के नीचे करघे में दो पैडल (जो ट्रेडल भी कहलाते हैं) होते हैं। पैडल हारनेस से जुड़े होते हैं जिनमे बैं बंधी होती हैं।

विभिन्न प्रकार की बुनाई का उत्पादन करने के लिये करघे में अलग-अलग हारनेस या ताने के धागों को उठाने वाले कम से कम 4 पैडल होने चाहिए। पैडल की अलग-अलग संख्या के साथ कई विविधताएं हो सकती हैं। दो पैडलों के बीच बार-बार बदलाव करने के बजाय पैडल के दोहराव का पैटर्न, भरन और ताने के धागों का विभिन्न सेट उठाया जाएगा। अलग अलग बुनाई के पैटर्न को बनाने के लिए उन्हें एक दुसरे के साथ जोड़ा जाएगा। जिसके परिणामस्वरुप बास्केटवीव, ट्विल, वैफेल, हनीकॉंब, ज़िगज़ैग (हैरिंग्बोन) से डायमंड आदि तक विभिन्न डिज़ाइनें बनाई जा सकती हैं।

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बूटी

बूटी संरचना का उपयोग करते हुए कपड़ो की बुनावट पर विविध प्रकार की डिज़ाइनों को उभारा जा सकता है। बूटी संरचना में एक बाने के धागे का उपयोग तो जमीनी कपड़े की बुनाई के लिए किया जाता है और कपड़े की सतह पर एक अतिरिक्त धागे को विभिन्न अंतरालों पर डाला जाता है जिससे सजावटी पैटर्न बनाया जा सके। पैटर्न बनाने के लिए अतिरिक्त बाने के साथ प्रभावित होने वाले ताने के हिस्से अलग हारनेस पर सेट किये जाएंगे जिससे वे आवश्यकतानुसार स्वतंत्र रूप से बुन सकेंगे। बूटी जितनी जटिल होगी उस पर निर्भर करेगा कि कितनी संख्या में हारनेस की आवश्यकता है। हारनेस को डोरियों द्वारा नियंत्रित किया जाएगा।

डिज़ाइन के अनुसार, गाँठ लगे छल्लों की मदद से डोरियों को वर्गीकृत किया जाएगा और हाथों से लकड़ी के हुकों के सहारे उनको संचालित किया जाएगा। एक बाने का धागा सादी बुनाई के लिए और एक अतिरिक्त बाने का धागा बूटी के लिए बारी-बारी से डाला जाएगा। अतिरिक्त बाने का धागा सिर्फ डिज़ाइन वाली जगह में बुनेगा। सिर्फ एक डोरी या कट शटल के माध्यम से भी सजावटी प्रभावों को लाया जा सकता है। कपड़ो की एक विस्तृत श्रृंखला को तैयार करने के लिए बूटी संरचनाओं का विभिन्न प्रकार से उपयोग किया जा सकता है।

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